भूतिया अस्पताल भूत कि कहानी
यह कहानी सच्ची कहानी है जो मेरे साथ गुजर चुकी हैं। जो में आप लोगो को शेयर कर रहा हूँ।
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50 साल पुराना अस्पताल जो की एक छोटा सा अस्पताल था। जिसमें मरीजों का इलाज किया जाता था। इस अस्पताल को चलाने के लिए डॉक्टर शाहब और उनकी बीबी दोनों ही अस्पताल को चलाते थे। आगे दुकाने थी जिस में मरीजों को देखा जाता था। और पीछे की और रहने के लिए कमरे बने हुए थे। जिसमे दोस्तर शाहब की फॅमिली रह सके 20 साल पहले इतने डॉक्टर हुआ नहीं करते थे और न ही क्लिनिक होते थे। इसलिए बहुत दूर दूर से मरीज इस छोटे से अस्पताल में आया करते थे। यह अस्पताल बहुत ज्यादा फेमस हो चूका था। इसकी वजह यहाँ पर अच्छा इलाज किया जाता था। जो डॉक्टर इस अस्पताल में बैठा करते थे वो बहुत टैलेंटेड डॉक्टर थे। मरीजों को ज्यादातर ठीक किया जाता था। डॉक्टर शाहब की लोक् प्रियता बहुत बाद गयी थी। पूरे इलाके में इन डॉक्टर शाहब का नाम हो चूका था। जिनकी उम्र 45 साल होगी।
डॉक्टर शाहब के तीन बेटे थे जिसमे सबसे छोटा बेटा m.b.b.s की पड़े करने बहार गया हुआ था। और दो बेटे पहले से शहर में अपना क्लिनिक चला रहे थे। डॉक्टर शाहब और उनकी की बीबी सिर्फ दो लोग ही अस्पताल की देख रेख वही पर दोनों लोग रहा करते थे। कुछ मरीज ऐसे आ जाते थे जो अस्पताल तक पहुंचते तक डैम तोड़ जाते थे। या किसी महिला के बच्चा होने बाला होता था। तो किसी कारन उन की मौत हो जाती थी। इतने लोगो के मरने के बाद यह अस्पताल शापित हो चूका था। डॉक्टर शाहब ने न तो यहाँ हवन करवाया न ही पूजा पथ जो की यहाँ की सुधि करण हो सके और अस्पताल आत्मायों के साये में रहने लगा मेरा घर भी अस्पताल से मिला हुआ था। इसलिए में इस अस्पताल की पहेली को जानता था। की अस्पताल में क्या क्या होता हैं। इस अस्पताल में रात के वक़्त किले ठुकने जैसी अबाजे आती यही जैसे कोई दीवार पर किले ठोक रहा हो जब जाकर देखा जाता था। तो वहा पर कोई नहीं होता था। झन झन जैसी भी ाबाजे आती थी।
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इस अस्पताल में एक कमरा कई सालो से बंद पड़ा था। जो किसी कारण से खोला नहीं गया था। शायद वहा पर ज्यादा लोग नहीं रहते थे इस कारण शायद यह कमरा खोला नहीं गया था। एक बार हम सो रहे थे तो अस्पताल के पीछे से घुँघरू की ाबाजे आ रही थी। में डर गया था की यह किसी ाबाजे आ रही है डर की बजह से में नहीं उठ पाया और यह ाबाजे सुनता रहा 20 मिनट तक ये ाबाजे आती रही और चुपचाप होकर सो गया डॉक्टर शाहब इस अस्पताल में अपनी बीबी के साथ अकेले ही रहा करते थे। अचानक डॉक्टर शाहब की बीबी की तबियत बिगड़ जाती है। डॉक्टर शाहब अपनी बीबी का इलाज अपने ही अस्पताल में करने लगे और कई महीनो तक इलाज किया लेकिन उनकी बीबी की तबियत में कोई सुधार नहीं आया तबियत बिगड़ती जा राहु थी। डॉक्टर शाहब की बीबी का शरीर पीला पद चूका था। आपात कालीन परिस्थति में उनको दिल्ली रेफर करना पड़ा जहा दो तीन महीने में उनकी तबियत ठीक हो गयी और अपने बड़े बेटे के यहाँ शहर में रहने लगी लेकिन दुबारा इस अस्पताल वापस नहीं आना चाहती थी तो वो अपने बेटे यहाँ ही रहती रही।
डॉक्टर शाहब अकेले ही अस्पताल को चलाते रहे वह रात को भी अकेले सोते थे कई बार उनके साथ कई घटनाये हुई जो अपनी मुँह जुबानी मेरे पापा को बताने लगे मेरी उम्र लगभग 13 14 होगी में वही पर खड़ा था उनकी बातें सुन रहा था। डॉक्टर शाहब बता रहे थे की शाम होते ही 7 से 8 बजे के बाद टोलेट का दरबाजा अपने आप लॉक हो जाता था। डॉक्टर शाहब को कई बार ऐसा लगा की कोई अंदर मरीज होगा कई बार ऐसा पर डॉक्टर शाहब ने चेक किया की कोई अंदर है या नहीं डॉक्टर शाहब ने अबाज दी की कौन हे अंदर लेकिन अंदर से कोई नहीं बोल रहा था। डॉक्टर शाहब ने टोर्च जलाकर नीचे की और देखा तो वहा था। टोलेट का दरबाजा खूब हिलाकर कर खोला गया दरबाजा तो खुल गया लेकिन डॉक्टर शाहब को यह यकीन हो गया था यहाँ कुछ न कुछ हैं। कुछ महीनो बाद डॉक्टर शाहब की तबियत ख़राब होने लगी।
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ठीक उसी तरह तबियत ख़राब होने लगी जैसे डॉक्टर शाहब की बीबी की हुई थी। डॉक्टर शाहब का शरीर भी पीला पद रहा था। जब ज्यादा हालत ख़राब होने लगी तो डॉक्टर शाहब के बेटे ने अपने पिता को बड़े हॉस्पिटल में एडमिट करा दिया मेने खुद डॉक्टर शाहब को एम्बुलेंस में जाते हुआ देखा था। उनकी हालत इतनी नाजुक हो चुकी थी। उनके बचने का न के बराबर रास्ता था। लेकिन अपने अस्पताल से दूर जब डॉक्टर शाहब गए तो उनकी तबियत में सुधार होना चालू हो गया था। डॉक्टर शाहब जब पूरे तरीके से स्वस्थ हो गए उसके वह अपने बड़े बेटे के यहाँ शहर में रहने लगे थे जहा पहले से उनकी बीबी रह रही थी। लेकिन डॉक्टर शाहब फिर दुबारा अस्पताल की तरफ को नहीं आये आते थे साल 6 महीने में सिर्फ 1 या 2 घंटे के लिए दिन में फिर चले जाते थे दो साल बाद डॉक्टर शाहब की बीबी का देहात हो गया था। डॉक्टर शाहब इस अस्पताल से दूर रह कर 6 7 साल जिए फिर डॉक्टर शाहब का बह देहांत हो गया अस्पताल का चार्ज छोटे बेटे ने ले लिया वह भी शहर में रहा करते थे। अस्पताल चलने के लिए शहर से गांव में आते थे और शाम को शहर चले जाया करते थे। अस्पताल में कोई भी नहीं रहता था। अस्पताल की देखभाल के लिए रात को चौकीदार रख लेते हैं।
जैसे चौकीदार अस्पताल के अंदर सोया होता है तो रात के 1 बजे के समय लेडलाइन पर रिंग आने लगती हैं। चौकीदार टेलीफोन को उठाने ही जाता है। इतने में टेलीफोन की रिंग बजना बंद हो जाती थी। चौकीदार टेलीफोन की घंटी से परेशान हो जाता हैं। और टेलीफोन में लगे वायर को टेलीफोन से हटा देता हैं। 15 मिनट के बाद फिर से टेलीफोन पर घंटी बजना चालू हो जाता जब चौकीदार घंटी बजते हुए देखता तो उसके होश उड़ जाते हैं। अस्पताल से निकल कर भाग जाता हैं। फिर दुबारा चौकीदार इस अस्पताल की तरफ नहीं भटकता हैं। डॉक्टर शाहब के बेटे को रात में राखबाली करने के लिए कोई न कोई तो यहाँ रहना चाहिए तो पुरे अस्पताल की सफाई कराइ जाती है। जो सालो से कमरा बंद था उसे खोला जाता हैं।इतना अँधेरा था इस कमरे में इस कमरे को देखकर डर लग रहा था। रात तो दूर हे दिन में जाने में आदमी डर जाये पूरे अस्पताल की सफाई हो जाने के बाद कमरो को किराये पर दे देते है। किराये पर रहने के लिए हाई स्कूल के लड़के एग्जाम देने के लिए कमरा किराये पर लिया था। वह चार लड़के थे उन लड़को से मेरी जान पहचान हो गयी थी।वह कभी पेपर नहीं होता तो मनोरंजन करने के लिये फ़िल्म देखा करते थे। चारो को ये अभ्यास हो चूका था की इस जगह कुछ तो है।लेकिन चारो रात के समय में कमरे से काम ही निकलते थे।
एक बार मुझे शाम के समय में फ़िल्म दिखाने को बुलाते है वो सब ऊपर बाले कमरे में थे और नीचे टॅलेंट एक नल था। नल के बराबर में सीढिया थी जिससे ऊपर जाया जा सके में 8 बजे के समय नल के बराबर से गुजरा जेसे सीढियो पर चढ़ने लगा तो मुझे नल चलने की आबाज सुनाई दी जब पलट कर देखा तो होश उड़ गए वहा पर कोई नहीं था। जल्दी जल्दी भाग कर ऊपर पंहुचा मुझे नजारा लगा की जेसे कोई भूत प्रेत नल को चला रहा था। में डर गया मेने फ़िल्म नहीं देखी सीधा घर को चला आया लड़को के पेपर ख़त्म हो गए और वह अपने अपने घर चले गए फिर और कोई इन कमरो में किराये पर नहीं रहा।
दोस्तों आपको ये कहानी कैसी लगी कमेंट बॉक्स में जाकर बताये शेयर करना न भूले आपका दिन शुभ रहे हमारा यह लेख पड़ने के लिए धन्यवाद
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